चारु चंद्र की चंचल किरणें,
खेल रहीं थीं जल थल में।
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई थी,
अवनि और अम्बर तल में।
पुलक प्रकट करती थी धरती,
हरित तृणों की नोकों से।
मानो झूम रहे हों तरु भी,
मन्द पवन के झोंकों से।
पंचवटी की छाया में है,
सुन्दर पर्ण कुटीर बना।
जिसके बाहर स्वच्छ शिला पर,
धीर वीर निर्भीक मना।
जाग रहा है कौन धनुर्धर,
जब कि भुवन भर सोता है।
भोगी अनुगामी योगी सा,
बना दृष्टिगत होता है।
बना हुआ है प्रहरी जिसका,
उस कुटिया में क्या धन है।
जिसकी सेवा में रत इसका,
तन है, मन है, जीवन है।
the full poem is not there
ReplyDeletePl let me know where can I get ful poem.Regards
Deletewill you provide me the full poem ,,,,,,,,,,,,,,,pllllzzzzzzzzzz
Deletesee the full poem on channel Kavya Rang : Colors of Poetry (@KavyaRang)
DeleteI also want full poem to down
ReplyDeleteLoad in my mobile.pl,give link
For it and oblige.
GIRISH PARIKH
AMDAVAD
write the motive of khaandkavya written by mathilisharan gupt in panchvati
Deleteplzzz send me meaning of this poem
Deletemool shabdo se chhedchhad hua hai
ReplyDeleteचारु चंद्र की चंचल किरणें,
ReplyDeleteखेल रहीं थीं जल थल में।
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई थी,
अवनि और अम्बर तल में।
पुलक प्रकट करती थी धरती,
हरित तृणों की नोकों से।
मानो झूम रहे हों तरु भी,
मन्द पवन के झोंकों से। I want explaination of this eight lines .
सुन्दर चन्द्रमा की चंचल किरणें जल और स्थल पर क्रीड़ाये कर रही है. चन्द्रमा की स्वच्छ, सफ़ेद चाँदनी पृथ्वी और आकाश में फैली हुई है. इस चाँदनी के स्पर्श से पृथ्वी हर्षित है. वह अपनी इस प्रसन्नता को हरी भरी घास के तिनकों की नौकों द्वारा प्रकट कर रही है. वृक्ष भी ऐसे लग रहे है, मानो वे वायु के मंद – मंद झोकों से स्पर्श पाकर आनंद के साथ झूम रहे हों.
DeleteYes you are right
Delete1. There are mistakes in above version. eg
ReplyDelete'Jiske sammukh swachcha shila par" and "bhogi kusumayudh yogi sa bana drushtigat hota hai" are corections
2.Expalianation: Unstable/fickle rays of beautiful moon were playing on the land and water. White moonlight was spread all over earth and sky. The earth was expressing its joy through the tips of green grass.the trees were as if lurching to the tune of light breeze
महोदय, क्या आप मुझे पूरी कविता का अर्थ दे सकते हैं?
Deleteमेरा मेल आई डी - avinashgupta1236@gmail.com
Please send me poem meaning on javedghostrider@gmail.com
DeleteMy mother has translated panchvati in marathi for her own, can I post some of it?She is 93 now as we can not publish but if I put some part here she will be happy.
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ReplyDeleteपितृ आज्ञा पालन करण्या ,राज्य वैभवाला तजुनि
ReplyDeleteनिघे राम त्या संगे जानकी ,पहा चालली गहन वनी|
त्या माघे सौमित्र निघे ,पुसती राघव तू कुठे ,
नम्र पणाने उत्तर दिधले ,तुम्ही माझे सर्वत्र जिथे ||
सीता वदली हे तर निघसी ,पितृ आज्ञा मानुनी
पण भाऊजी तुम्ही कां येता,सर्व सुखांना त्यागुनी |
वदे लक्ष्मण वहिनी मजला ,बनवु नका तुम्ही त्यागी ,
श्रीरामाच्या सेवे साठी ,समजा मजला सहभागी ||
राम पुसे कर्तव्य हे मित्रा,लक्ष्मणाने शिर नमविले
दादा तुमच्या साठी कधी मी ,कोणते कर्तव्य पुरे केले ?
तुम्ही उत्कट प्रेमाची केले ,वदुनी सीता मृदु हसली ,
पण रामाच्या नेत्र मधुनी अश्रू मालिका ओघळली ||
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ReplyDeleteA part translated by my mother.Hope readers will give their opinion.
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ReplyDeleteGive meaning of this poem on my email id
ReplyDeleteGive meaning of this poem on my email id shilpasarfare999@gmail.com
ReplyDeleteGive meaning of this poem on my email id shilpasarfare999@gmail.com
ReplyDeleteGive meaning of this poem on my email id
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ReplyDeleteDear Shilpa,as I mentioned in my post this is the translation of the couplets in marathi by my mother.I have no idea if you understand marathi ,if so can send you some part of it .As we have published a book and the honour was done by the Mathlisharan gupt awardee Dr. Saroj kumar from Indore.He too praised the translation.I have some portion with me if you want can send you for sure.
ReplyDeleteThanks a ton.
Dear Shilpa,as I mentioned in my post this is the translation of the couplets in marathi by my mother.I have no idea if you understand marathi ,if so can send you some part of it .As we have published a book and the honour was done by the Mathlisharan gupt awardee Dr. Saroj kumar from Indore.He too praised the translation.I have some portion with me if you want can send you for sure.
ReplyDeleteThanks a ton.
Sir i too want the marathi explanation of the poem but the whole would work not only some part of it would be useful.my email id chinmayisadanandrasal@gmail.com
DeleteYour favor would mean a lot to me......
The poetry i want is charu chandra ki chanchal kirne.......
DeleteCan u please send me the full meaning of "PANCHWATI" through gmail-tarunchakma739@gmail.com
ReplyDeleteCan u please send me the full meaning of "PANCHWATI" through gmail-tarunchakma739@gmail.com
ReplyDeleteचारुचंद्र की चंचल किरणें ...
ReplyDeleteचारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
मानों झीम[1] रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥
पंचवटी की छाया में है, सुन्दर पर्ण-कुटीर बना,
जिसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर, धीर-वीर निर्भीकमना,
जाग रहा यह कौन धनुर्धर, जब कि भुवन भर सोता है?
भोगी कुसुमायुध योगी-सा, बना दृष्टिगत होता है॥
किस व्रत में है व्रती वीर यह, निद्रा का यों त्याग किये,
राजभोग्य के योग्य विपिन में, बैठा आज विराग लिये।
बना हुआ है प्रहरी जिसका, उस कुटीर में क्या धन है,
जिसकी रक्षा में रत इसका, तन है, मन है, जीवन है!
मर्त्यलोक-मालिन्य मेटने, स्वामि-संग जो आई है,
तीन लोक की लक्ष्मी ने यह, कुटी आज अपनाई है।
वीर-वंश की लाज यही है, फिर क्यों वीर न हो प्रहरी,
विजन देश है निशा शेष है, निशाचरी माया ठहरी॥
कोई पास न रहने पर भी, जन-मन मौन नहीं रहता;
आप आपकी सुनता है वह, आप आपसे है कहता।
बीच-बीच मे इधर-उधर निज दृष्टि डालकर मोदमयी,
मन ही मन बातें करता है, धीर धनुर्धर नई नई-
क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह, है क्या ही निस्तब्ध निशा;
है स्वच्छन्द-सुमंद गंध वह, निरानंद है कौन दिशा?
बंद नहीं, अब भी चलते हैं, नियति-नटी के कार्य-कलाप,
पर कितने एकान्त भाव से, कितने शांत और चुपचाप!
है बिखेर देती वसुंधरा, मोती, सबके सोने पर,
रवि बटोर लेता है उनको, सदा सवेरा होने पर।
और विरामदायिनी अपनी, संध्या को दे जाता है,
शून्य श्याम-तनु जिससे उसका, नया रूप झलकाता है।
सरल तरल जिन तुहिन कणों से, हँसती हर्षित होती है,
अति आत्मीया प्रकृति हमारे, साथ उन्हींसे रोती है!
अनजानी भूलों पर भी वह, अदय दण्ड तो देती है,
पर बूढों को भी बच्चों-सा, सदय भाव से सेती है॥
तेरह वर्ष व्यतीत हो चुके, पर है मानो कल की बात,
वन को आते देख हमें जब, आर्त्त अचेत हुए थे तात।
अब वह समय निकट ही है जब, अवधि पूर्ण होगी वन की।
किन्तु प्राप्ति होगी इस जन को, इससे बढ़कर किस धन की!
और आर्य को, राज्य-भार तो, वे प्रजार्थ ही धारेंगे,
व्यस्त रहेंगे, हम सब को भी, मानो विवश विसारेंगे।
कर विचार लोकोपकार का, हमें न इससे होगा शोक;
पर अपना हित आप नहीं क्या, कर सकता है यह नरलोक!
मैथिलीशरण गुप्त
Can u please send me the full meaning of "PANCHWATI" through gmail-
ReplyDeletemannakumari.1970@gmail.com
संपूर्ण कविता का अर्थ दे सकते है
ReplyDeletefuck **********************************************************
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